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Home Hindi Section

A1 और A2 दूध

Dr. Ibne Ali by Dr. Ibne Ali
December 24, 2019
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A1 और A2 दूध
A1 और A2 दूध
 
दूध एक संपूर्ण पौष्टिक आहार के रूप में जाना जाता है जिसे शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही वर्ग के लोग एक सामान लेते हैं। दूध के अंदर विभिन्न पोषक तत्व होते हैं जैसे  लैक्टोज, प्रोटीन, फैट, कैल्शियम और अन्य विटामिन और मिनरल्स। दूध में दो तरह का प्रोटीन होता है एक वेह प्रोटीन और दूसरा केसिन प्रोटीन।  केसीन प्रोटीन भी दो रूपों में मिलता है अल्फा केसीन और बीटा केसीन।
बीटा केसीन भी दो रूपों में पाया जाता है एक A1 और दूसरा A2। कुछ वैज्ञानिकों द्वारा की गई रिसर्च  से यह पता चला है कि A1 प्रकार का दूध दिल की बीमारियों से होने वाली मौतों के साथ जुड़ा पाया गया है। इसका सबूत खरगोशों में की गई एक रिसर्च से मिला जिन खरगोशों को  बीटा केसीन A2 खिलाया गया उनमें कोलेस्ट्रॉल की मात्रा और आर्टिक नस की मोटाई उन खरगोशों से कम मिली जिनको बीटा केसीन A1 खिलाया गया था। इससे यह निष्कर्ष निकला गया कि A2 अच्छा दूध होता है| यही एक्सपेरिमेंट Venn DJ नामक वैज्ञानिक ने सन 2005 में इंसानों में किया जिसमें उन्होंने 62 लोगों को अलग-अलग ग्रुप में रखकर 4.5 हफ्तों तक A1 और A2 दूध और चीज़ खिलाया। इसमें उन्होंने कोई ऐसा तथ्य नहीं पाया कि जिसमें यह कहा जा सके कि A1 और A2 दूध की वजह से खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा पर कोई प्रभाव पड़ता हो।
आखिर A1 और A2 विवाद है क्या?
 
बीटा केसीन गाय, भैंस और अन्य जानवरों के दूध में एक मुख्य प्रोटीन होता है। विभिन्न वैज्ञानिक रिसर्चो से यह बात पता लगी है कि सैकड़ो सालो से अधिक दूध और प्रोटीन उत्पादन के लिए की गई सेलेक्टिव ब्रीडिंग और म्यूटेशन की वजह से बीटा केसीन के अलग-अलग वेरिएंट बन गए हैं।
आज हम लगभग 15 अलग-अलग बीटा केसीन के बारे में जानते हैं जिनमें सबसे महत्वपूर्ण A1 और A2 हैं। बीटा केसीन A1 जिसे खराब या बुरा प्रोटीन माना जाता है उसमें और A2 प्रोटीन में सिर्फ 1 अमीनो एसिड का फर्क है।
यह बात जानने की ज़रूरत है कि बीटा केसिन एक प्रोटीन है जो अलग-अलग अमीनो एसिड के जुड़ने से बनता है जैसे दीवार को एक-एक ईंट जोड़कर बनाया जाता है इसी तरह अमीनो एसिड को एक ईंट और दीवार को प्रोटीन मान सकते हैं।
A1 प्रोटीन  में 67वीं पोजीशन पर हिस्टीडीन नामक अमीनो एसिड होता है जबकि A2  प्रोटीन में उस पोजीशन पर प्रोलीन होता है। इससे यह फर्क पड़ता है कि A1 बीटा केसिन पेट में डाइजेस्ट होकर एक नया प्रोटीन बना लेता है जो बायोलॉजिकली  और फिजियोलॉजीकली एक्टिव होता है जिसे बीटा केज़ोमोर्फिन कहते हैं। यही प्रोटीन A1 दूध से जुड़ी हुई बीमारियों का एक मुख्य कारक माना जाता है।
क्या यह सच है कि देसी गाय ए2 टाइप की और विदेशी गाय ए1 टाइप की होती हैं?
जीनोमिक स्टडी से पता चला है कि Bos जीनस जिसमें देशी, विदेशी गाय और याक  आते हैं शुरू में A2 A2  टाइप के थे पर अनुवांशिक विलय (जेनेटिक म्यूटेशन) के कारण कुछ जानवरों में A1 टाइप के जीन उत्पन हो गए। बाद में जब सेलेक्टिव बिल्डिंग शुरू हुई तो अधिक दूध उत्पादन और प्रोटीन के लिए जिन सांडो को चुना गया उनमें अनजाने में उन अनुवांशिक तौर से उन्नत सांडो को चुन लिया गया जिनमें A1 जीन था और उनसे आर्टिफीशियल इनसेमिनेशन की तकनीक की वजह से A1 नस्ल की गायों का उत्पादन तेजी से हुआ।
कुछ सर्वेक्षणों में यह भी पता चला है कि A1 और A2  ब्रीड स्पेसिफिक ना होकर एरिया स्पेसिफिक हैं जैसे नॉर्थ अमेरिका और नॉर्थ यूरोप में HF गायों में A1 की फ्रीक्वेंसी 90% से अधिक है जबकि जर्मन HF में A2 की फ्रीक्वेंसी 97% से अधिक है।
और देशों की HF में A1 की फ्रीक्वेंसी 40 से 65% तक होती है। अमेरिका और यूरोप की दूसरी ब्रीड जैसे ग्रुएन्सेय A2 की फ्रीक्वेंसी 98 प्रतिशत से भी अधिक होती है लगभग देशी गायो जितनी। जर्सी ब्रीड में A2 की फ्रीक्वेंसी 80% तक होती है जबकि हिंदुस्तानी देसी गायों में A2 की फ्रीक्वेंसी 98% से अधिक है।
तो यह तथ्य सही नहीं लगता कि देसी गायों को ज्यादा गिलोरी फाई किया जाए क्योंकि यदि देखा जाए तो भैंस या बकरी का दूध 100% A2 टाइप का होता है। और इस लॉजिक से बकरी और भैंस का दूध और भी लाभदायक हो जाता है।
भारतीय वैज्ञानिकों का इस विषय में क्या कहना है?

मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि लगभग सभी भारतीय वैज्ञानिक इस विषय पर एकमत हैं। देश के सबसे बड़े  पशु अनुवांशिक शिक्षण संस्थान NBAGR जो कि ICAR द्वारा करनाल में स्थापित किया गया है वह इस विषय में सन 2009 से कार्यरत है उसी संस्थान की पहली रिपोर्ट में यह कहा गया था कि भारतीय गायों में A2 की फ्रीक्वेंसी 98 प्रतिशत तक है और कुछ ब्रीड्स में यह सौ प्रतिशत भी और सभी भैंसे पूर्ण रूप से A2 दूध देती हैं।
उन्होंने फिर भारत में मौजूद विदेशी गायों में भी जांच कि जिससे पता चला कि उनमें भी अधिकतर A2 दूध का ही जीन है। 2012 में प्रकाशित एक संलेख में यह बताया गया कि क्रॉस ब्रीड गाय भी मुख्यत: A2 जीन ही अपने अंदर लिए है  इसलिए n b a g r का कहना है कि हमें इस पर नजर रखनी चाहिए परंतु इस समय ब्रीडिंग स्ट्रेटेजी बदलने की कोई जरूरत नहीं है।
क्या A1 दूध पीने से दिल की बीमारियां ब्लड प्रेशर डायबिटीज या और बीमारियां होती हैं? 
यह सब झूठी अफवाह हैं जो कम जानकारी की वजह से मीडिया में फैली हैं। सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि कारण (causal factor) और आशंका (risk factor) में फर्क होता है।  A1 कोई बीमारी का कारण नहीं है वह सिर्फ बीमारी की आशंका को बढ़ा सकता है। कुछ  सर्वेक्षणों में थोड़ा बहुत रिस्क देखा गया है  मगर कुछ अति उत्साहित लोगों ने इसे बीमारी की वजह ही बना दिया।
यह कॉन्ट्रोवर्सी 1990 में डॉक्टर एलियट ग्रुप द्वारा शुरु की गई थी इसमें एक पेपर पब्लिश हुआ था जिसमें डायबिटीज और दिल की बीमारियों से होने वाली मौतों को उन लोगों के खान-पान से correlate किया गया था। उन  सर्वेक्षणों में दिल की बीमारियों और A1  बीटा केसीन के बीच में काफी घनिष्ट संबंध देखा गया था और यह ऊंचाई पर जैसे नॉर्थ अमेरिका और नॉर्थ यूरोप
भारत इस स्टडी का पार्ट नहीं था तो इसके एप्लीकेशंस का यहां कोई सवाल ही नहीं उठता। इस तरह की एरिया रिस्ट्रिक्टेड सर्वेक्षण अध्ययन  की प्रमाणिकता पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। और इस स्टडी में यह भी माना गया की हर व्यक्ति बीटा केसीन को एक जैसा एक्स्पोज  हुआ था जो कि बिल्कुल भी संभव नहीं है।

इस तरह के सर्वेक्षणों में सबसे बड़ी दिक्कत इनके विवेचन में आती है इंडस्ट्री, मीडिया और वैज्ञानिक इसे अपने हिसाब से मॉडिफाई कर लेते हैं और गलत नॉलेज मार्केट में आ जाती है। इसके विपरीत चावल या गेहूं का ग्लाइसेमिक इंडेक्स दूध से कहीं अधिक होता है पर उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता इस सब में एक्सपर्ट्स की बात भी कोई नहीं सुनता।

साइंटिफिकली कॉज़ल या रिस्क फॅक्टर को डिज़ीज़ के साथ जोड़ कर देखने का एक सेट क्राइटीरिया होता है जिस मिल्स कॅनन्स भी कहते हैं इसमे (A) Dose Response Effect (B) Biological Explanation With Direct Evidence मुख्यत देखा जाता है

अब जैसे फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया में औसत A1 बीटा केसिन की सेवन 0.3 ग्राम प्रतिदिन  की है जबकि उन जगहो में दिल की बीमारियो से होने वाली मौतो में बड़ा अंतर है फ्रॅन्स में 88% और ऑस्ट्रेलिया में 33%, और तो और अमेरिका और युरोप में पिछले दशक से अब तक A1 बीटा केसिन के सेवन में कोई बदलाव नही आया जबकि हार्ट डिसीज़ से होने वाली मौते बहुत कम हो गयी हैं

डाइयबिटीज़ मेलाइटस टाइप 1

डाइयबिटीज़ जैसी बीमारिया काफ़ी जटिल होती हैं और इनकी कोई एक वजह नही होती ये कहा जाता है की जिन बच्चो को इन्फेंट फ़ॉर्मूला (जैसे सेरेलेक) दिया जाता है उनमे डाइयबिटीज़ की सम्भावना बढ़ जाती हैं, जबकि ज़्यादातर इन्फेंट फॉर्मुलास में वेह प्रोटीन इस्तेमाल होता है और केसिन की बहुत कम मात्रा होती है, तो इसका कोई भी ठोस प्रमाण अभी तक नही मिला है

बाइयोलॉजिकल एक्सप्लनेशन ऑफ BCM (बीटा कसोमोर्फिन)

बीटा कसोमोर्फिन जो बीटा कासीन A1 के टूटने से बनता है, उसके लिए जो भी रिपोर्ट्स हैं वो लैब में टेस्ट ट्यूब्स या पेट्री डिश में किए गये अध्यनो की ही हैं.

बीटा कसोमोर्फिन को हार्ट, पॅनक्रियास या दिमाग  पर अपना बाइयोलॉजिकल असर दिखाने के लिए आंतो में रिलीज़ होकर ब्लड में अवशोषित होना पड़ेगा और उन अंगो तक पहुँचना होगा जहाँ ये बीमारी पैदा करने की सम्भावना रखता हो| अभी तक ऐसी कोई रिपोर्ट नही है की A1 दूध पीने के बाद मनुष्यों में बीटा कसोमोर्फिन रिलीस होता हो या वो आंत क्रॉस करके ब्लड में पहुँचता हो और दूसरी बात ये की मनुष्यों की आंतो में 3 एमिनो आसिड से बने पेपटाइड ही अवशोषित हो पाते हैं जबकि बीटा कसोमोर्फिन पेपटाइड 7 एमिनो एसिड जितना लम्बा है|

एक और बात बीटा कसोमोर्फिन सिर्फ़ जब ही अब्ज़ॉर्ब हो सकता जब या तो लीकी इंटेसटाइन की बीमारी हो या  बिल्कुल नवजात शिशु हो|

वहीं दूसरी तरफ इस बात के भी सबूत हैं की बीटा कसोमोर्फिन सेहत के लिए लाभदायक होता है, इससे जुडी हुई कई रिसर्च प्रकाशित हो चुकी है, जिनमे ये है की बीटा कसोमोर्फिन इंटेसटाइन में म्युसिन के उत्पादन को बढ़ावा देता है, जिसमें रक्षात्मक गुण होते हैं, तो इस तरह बीटा कसोमोर्फिन स्वास्थ वर्धक भी हैं

लैब एनिमल्स

लैब एनिमल्स में बीटा कसोमोर्फिन और दिल की बीमारियों का असोसियेशन सिर्फ़ एक रिपोर्ट में मिला है उसमे खरगोश पर एक्सपेरिमेंट किया गया था जो मानव डिज़ीज़ का मॉडेल ही नही माना जाता|

वैज्ञानिको का कहना है की अभी तक कोई भी ऐसा विश्वसनीय सबूत नही मिला है जो ये इंडिकेट करता हो की  A1 मिल्क पीने से कोई दिल की बीमारी या डाइयबिटीज़ होते हो

A1 मिल्क इन इंडियन कॉंटेक्स्ट

हमे अपनी भारतीय गाये की नसले बचानी चाहिए पर ऐसा नही है की बहारी ब्रीड्स को बिल्कुल ख़त्म कर दें

और इस A1 मिल्क और क्रॉनिक डिज़ीज़ के असोसियेशन की हाइपोथीसिस को पश्चिमी देशो में बनाया गया और सर्वे किया गया है उसे इंडिया में देखना ठीक नही है

एक महत्वपूर्ण बात यदि पश्चिमी देशो की धारणा के हिसाब से देखे तो यहाँ 55% दूध भैंसो से मिलता है बाकी 40% गये से और 4 से 5% बकरी से, तो टोटल प्रोटीन का बीटा केसीन अगर 45% माने उनमे से 25% बीटा केसिन A1 का उस से मिलता है, तो इसका मतलब प्रति व्यक्ति आवरेज 0.24ग्राम प्रतिदिन का सेवन है जो की लगभग 10 गुना कम है सर्वे के हिसाब से.

काफी गहन रिसर्च के बाद डॉक्टर ट्रेसर और यूरोपियन फूड सेफ्टी अथॉरिटी ने 2009 में यह प्रकाशित किया कि A1 दूध हर तरह से सेफ है और इसे पिया जा सकता है|
Dr. Ibne Ali

Dr. Ibne Ali

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